स्वास्थ्य-चिकित्सा >> चमत्कारिक जड़ी-बूटियाँ चमत्कारिक जड़ी-बूटियाँउमेश पाण्डे
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क्या आप जानते हैं कि सामान्य रूप से जानी वाली कई जड़ी बूटियों में कैसे-कैसे विशेष गुण छिपे हैं?
कदम्ब
कदम्ब के विभिन्न नाम:
हिन्दी में- कदम, कदम्ब, गुजराती में- कदम्बो, बंगला में- कदम गाछ, तेलुगु में- कडिमुचेदु, मलयालम में- राजकदम्ब, कन्नड़ में- कडऊ, मराठी में- कदम, अंग्रेजी में - Kadamba tree
लेटिन में - एन्थोसिफेलस कडम्बा (Anthocephalus cadamba)
वानस्पतिक कुल- रूबिएसी (Rubiaceae)
कदम्ब का संक्षिप्त परिचय
यह एक मध्यम श्रेणी का वृक्ष होता है। इसकी पत्तियां विपरीत क्रम में लगी होती हैं। पत्तियां बड़ी, साधारण सलग किनारे वाली एवं नुकीले सिरे वाली होती हैं। इनके पुष्प सितम्बर से नवम्बर के बीच लगते हैं। जो गोल गुच्छे के रूप में बहुत सुन्दर होते हैं। इनमें हल्की महक भी होती है। फल भी फूले हुये होते हैं जिनमें छोटे-छोटे बीज होते हैं। तना काष्ठीय एवं भूरा होता है। कोकण में प्राय: ये वृक्ष सड़क के किनारे एवं मंदिर के आस-पास रोपे गये हैं। वहाँ ये बहुतायत से प्राप्त होते हैं। इस वृक्ष की छाया शीतल एवं सुखद होती है।
कदम्ब का धार्मिक महत्त्व
कदम्ब वृक्ष का धार्मिक रूप से अत्यधिक महत्व है। इसके ऐसे चमत्कारिक तथा उपयोगी उपाय हैं जिनका प्रयोग करने से व्यक्ति की अनेक प्रकार की समस्यायें समाप्त होकर सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है तथा भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद भी प्राप्त हो जाता है। कदम्ब वृक्ष के असंख्य प्रयोग हैं किन्तु यहाँ पर कुछ यहाँ पर कुछ प्रमुख प्रयोगों के बारे में ही बताया जा रहा है:-
> इस प्रयोग के द्वारा आप अपने व्यावसायिक प्रतिष्ठान तथा भवन को किसी भी प्रकार की नजर से बचा सकते हैं। यह एक सरल प्रयोग है जिसे आप आनन्द एवं आसानी के साथ कर सकते हैं। इसके लिये आपको कदम्ब वृक्ष की कुछ सूखी लकड़ियां, एक उपला, 50 ग्राम लोबान, 5 टिकिया कपूर की आवश्यकता रहेगी। इस प्रयोग के लिये कोई विशेष दिन नहीं है, जब आपको सुविधा हो तब कर सकते हैं अथवा जब आपको लगे कि किसी व्यक्ति की नजर लग सकती है अथवा जब बार-बार विभिन्न रूपों में समस्यायें उत्पन्न होने लगें तब यह उपाय कर लें। यह उपाय आप संध्या पड़े करें। अपने प्रमुख कक्ष में आकर उपाय प्रारम्भ करें। उपले पर कदम्ब की लकड़ियों को छोटा-छोटा तोड़ लें। इतना छोटा कि टूटी लकड़ियां उपले पर आ जायें। इनके ऊपर कर्पूर की तीन टिकिया रखें और अग्नि दिखा दें। कर्पूर के जलने से कदम्ब की लकड़ियां भी जलने लगेंगी। जब कपूर की टिकिया जल जायें और इससे लकड़ियां भी थोड़ी-बहुत जलने लगें तो इन लकड़ियों पर थोड़ा लोबान डाल दें। इससे धुआं उठने लगेगा। कुछ देर तक वहीं खड़े रहें। फिर दूसरे कमरे में आयें और जलती लकड़ियों पर थोड़ा लोबान डालें। इस प्रकार आपके जितने भी कमरे हैं, उन सभी में लोबान का धुआं दें। कमरे में भरे धुयें को निकालने के लिये पंखा नहीं चलायें, इसे अपने आप जाने दें। सब कमरा में घूम कर अपने मुख्यद्वार पर आ जायें। जितनी लोबान बची है, वह सारी लकड़ियों पर डाल दें और शेष बची दो टिकिया कर्पूर ऊपर रखकर जला दें। इस उपाय से आपके भवन का किसी भी प्रकार का नजरदोष समाप्त हो जायेगा। बाद में उपले आदि को या तो जल में प्रवाहित कर दें अथवा अपने भवन से दूर किसी चौराहे पर डलवा दें। समस्त क्रिया करते समय अगर आप अपने इष्ट के किसी मंत्र का जाप भी करते रहें तो अति उत्तम है। यह प्रयोग आप अपने व्यावसायिक प्रतिष्ठान पर भी कर सकते हैं।
> जो व्यक्ति कदम्ब के वृक्ष की नित्य पूजा करता है तथा उसपर जल अर्पित करता है, उस पर भगवान श्रीकृष्ण (गोवर्धन नाथ) की विशेष कृपा होती है।
> श्रीकृष्ण शरण प्रपछे इस मंत्र का उच्चारण करते हुये कदम्ब वृक्ष की नित्य परिक्रमा करने वाले व्यक्ति की बाधायें दूर होती हैं, साथ ही यह प्रयोग नित्य करने वाला व्यर्थ की समस्याओं से मुक्त रहता है।
> जो व्यक्ति कदम्ब के पुष्पों का घी, शक्कर और मधु मिलाकर पूर्णिमा के दिन हवन करता है, उस पर लक्ष्मी की अत्यधिक कृपा रहती है, उसके यहाँ लक्ष्मी स्थिर होती है। यह हवन आप संक्षित रूप में भी सम्पन्न कर सकते हैं। इसके लिये आप एक कण्डा प्राप्त करें। कण्डे को उल्टा रख कर उसके ऊपर कदम्ब की लकड़ियों को छोटी-छोटा तोड़ कर रख दें। इसके ऊपर थोड़ा शुद्ध घी डाल कर अग्रि प्रज्ज्वलित कर लें। अब आप उत्त पदार्थों की आहुतियां दें। जब आहुतियां पूर्ण हो जायें तो कण्डे तथा लकड़ियों आदि को ठण्डा होने दें, तत्पश्चात् इन्हें उठा कर पीपल वृक्ष के नीचे रख दें अथवा जल में प्रवाहित कर दें। ऐसा संक्षित हवन करके आपको भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होने के साथ-साथ मानसिक शान्ति की भी प्राप्ति होगी।
> कदम्ब के पुष्पों को काले तिल, घी, मधु और शक्कर के साथ हवन करने वाले की प्रशासनिक बाधायें समाप्त होती हैं। प्रत्येक कार्य में उसकी विजय होती है। समाज में उसकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। यह हवन भी आप संक्षित रूप से ऊपर बताये अनुसार सम्पन्न करके लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
> कदम्ब की लकड़ी को मधु, घृत, दही में डुबोकर घर में दहन करने से अथवा कदम्ब की लकड़ियां जलाकर उस पर उक्त पदार्थों की 108 आहुतियां कुछ दिनों तक देने से घर में आरोग्य आता है तथा बीमारियों का सिलसिला टूटता है। सुख-शांति तथा समृद्धि में निरन्तर वृद्धि होती है और धन की किसी प्रकार की समस्या नहीं आती है। > जो व्यक्ति कदम्ब की नित्य परिक्रमा करता है, उसे अनिद्रा रोग नहीं होता है।
कदम्ब का ज्योतिषीय महत्त्व
> स्नान के जल में कदम्ब का फूल डालकर उस जल से स्नान करने वाला गुरु ग्रह की पीड़ा से मुक्त रहता है।
> उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र जिस दिन पड़े उस दिन गुरु ग्रह से पीड़ित व्यक्ति यदि कदम्ब के वृक्ष का पूजन करे, उसकी परिक्रमा करे तो निश्चय ही वह गुरु ग्रह की पीड़ा से मुक्त रहता है।
कदम्ब का वास्तु में महत्त्व
वास्तु विज्ञान की दृष्टि से कदम्ब के वृक्ष का घर की सीमा में होना अत्यन्त शुभ है। घर के नैऋत्य, पश्चिम अथवा दक्षिण दिशाओं में इसका होना विशेष शुभ है। इन दिशाओं के अतिरिक्त यदि यह अन्य किसी दिशा में हो तो उस परिस्थिति में इसके पास ही सीता अशोक अथवा निर्गुण्डी का एक पौधा लगा देना चाहिये।
कदम्ब का औषधीय महत्त्व
आयुर्वेदानुसार यह एक बलकारक, ग्राही, ज्वरघ्न, स्तम्भक, दीपन, पाचनवर्द्धक व्रणहारी, शोथहर वनस्पति है। यह नेत्रों के लिये हितकारी, मुख व्रणों में लाभ पहुँचाने वाली तथा ज्वर, वमन, अतिसार इत्यादि में परम उपकारी होती है। औषधि हेतु इसकी मूल, पत्र, पुष्प, फल तथा काण्ड इन सभी भागों का प्रयोग किया जाता है:-
> जो लोग पान-सुपारी हमेशा चबाते रहते हैं अथवा जिन लोगों के दाँत टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं, ऐसे लोगों के मुख के अन्दर प्राय: कट जाया करता है तथा व्रण बन जाते हैं। ऐसे लोगों को कदम्ब की थोड़ी सी छाल का काढ़ा बनाकर उस काढ़े से दिन में 3-4 बार कुल्ले करने चाहिये। इससे लाभ प्राप्त होता है।
> मुख के छालों में कदम्ब की छाल के काढ़े से दिन में 3-4 बार कुले करने से लाभ होता है। कदम्ब की छाल लेकर उसे ठीक से सुखाकर दरदरा कूट-पीस लें। इस चूर्ण को आधा चम्मच मात्रा में लेकर दो कप जल में उबालें। आधा पानी शेष बचने पर इसे उतार कर ठण्डा करें और छान कर प्रयोग करें।
> नेत्रों की पीड़ा में अथवा नेत्राभिष्यंद में कदम्ब की मूल का रस नेत्र पलकों पर लगाने से लाभ होता है अथवा इसकी ताजी छाल के रस में नींबू का रस और फिटकरी तथा अफीम मिलाकर पलकों पर लगाने से लाभ होता है। ऐसा ध्यानपूर्वक करें। आँखों के भीतर यह नहीं जाना चाहिये।
> अश्मरी रोग में इसकी जड़ का काढ़ा लाभ करता है। इसकी जड़ को जल में औटाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को हल्का गर्म करके दिन में 2-3 बार 2-2 चम्मच लेना हितकर है।
> मुख के छाले हो जाने पर इसकी छाल के टुकड़ों को चूसने से एवं लार को बाहर श्रेकते रहने से लाभ होता है। इसे आप इस प्रकार भी प्रयोग कर सकते हैं- छाल को सुखाकर बारीक पीस कर पाउडर बना लें। आधा चम्मच यह पाउडर लेकर इसमें थोड़ा पानी मिलाकर इसे जीभ पर लगायें। इससे लार बहने लगेगी। थोड़ी देर तक लार गिराते रहें, फिर कुल्ला कर लें। ऐसा एक-दो दिन करने से लाभ मिलता है।
> वमन एवं अतिसार में कदम्ब की छाल के रस को जीरा एवं मिश्री मिलाकर सेवन करें, लाभ मिलेगा।
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- उपयोगी हैं - वृक्ष एवं पौधे
- जीवनरक्षक जड़ी-बूटियां
- जड़ी-बूटियों से संबंधित आवश्यक जानकारियां
- तुलसी
- गुलाब
- काली मिर्च
- आंवला
- ब्राह्मी
- जामुन
- सूरजमुखी
- अतीस
- अशोक
- क्रौंच
- अपराजिता
- कचनार
- गेंदा
- निर्मली
- गोरख मुण्डी
- कर्ण फूल
- अनार
- अपामार्ग
- गुंजा
- पलास
- निर्गुण्डी
- चमेली
- नींबू
- लाजवंती
- रुद्राक्ष
- कमल
- हरश्रृंगार
- देवदारु
- अरणी
- पायनस
- गोखरू
- नकछिकनी
- श्वेतार्क
- अमलतास
- काला धतूरा
- गूगल (गुग्गलु)
- कदम्ब
- ईश्वरमूल
- कनक चम्पा
- भोजपत्र
- सफेद कटेली
- सेमल
- केतक (केवड़ा)
- गरुड़ वृक्ष
- मदन मस्त
- बिछु्आ
- रसौंत अथवा दारु हल्दी
- जंगली झाऊ